श्री देव सुमन एक परिचय

श्री देव सुमन नाम के इस महान क्रान्तिकारी का जन्म 25 मई 1916 को पं. हरिराम बड़ोनी जी के घर ग्राम-जौल (चम्बा के नजदीक) जिला टिहरी, उत्तराखण्ड़ की पावन धारती पर हुआ था। पिता हरिराम बड़ोनी जी पंडिताई (ज्योतिश) के साथ-साथ वैद्य का काम भी करते थे।

उस समय नजदीक ग्राम में हैजा फैल गया और वहाँ हैजा का इलाज करते-करते स्वयम् हैजा के चपेट में आकर काल में समा गये। उस समय सुमन जी मात्र सासन् 1937 में स्वयं टिहरी नरेष ने सुमन जी को नरेन्द्रनगर बुलाया और उन्हें नौकरी करने पर जोर दिया। उस समय इन राजाओं को भय था कि यदि प्रजा में कोई पढ़लिख जायेगा तो अवष्य ही वह अत्याचारों के विरूद्ध कहेगा। वही हुआ। सुमन जी का उत्तर था कि महाराज ! मैं चन्द चांदी के टुकड़ों के लिये आपना भावी जीवन गिरवी नहीं रख सकता। भावी जीवन सुमन जी का क्या था -समाज व राश्ट्रप्रेम। सुमन जी गांव आते तो गरीब बच्चों को किताब, कापियंा और पेंसिल आदि बांटते और रात्रि पाठषाला चलाते थे। सन् 1937 में विनयलक्ष्मी जी से विवाह के बाद वे देष की स्वतंत्रता व टिहरी नरेष नरेन्द्र षाह के अत्याचारों के विरूद्ध भाशण, लेख व जनता के बीच गांधी का सूत कातने वाला चर्खा ष्यरवदाचक्रष् चलाकर जनता को जागृत करने में जुट गये। 23 जनवरी सन् 1939 को देहरादून में टिहरी राजा से प्रजा के अधिकारो की मांग के लिये गाठित टिहरी राज्य प्रजामण्डल में मंत्री चुन लिये गये। लुधियाना (पंजाब) के खुले अधिवेषन में टिहरी के राजा द्वारा जनता पर हो रहे अत्याचारों को पं0 जवाहर लाल नेहरू (अध्यक्ष) के समक्ष रखा।

टिहरी राज्य के अन्दर प्रजा की स्थिति आज यह है कि वह अपनी आन्तरिक पीड़ा पर न रो सकती है, न कहीं बैठकर किसी को अपना दुःख -दर्द सुना सकती है। तरह-तरह के टैक्स औताली ,गयाली ,मुयाली ,देण-खेण, पौणटुटी, सौणी सेर, छूट, तुली पाथा, रकम, घाट, पाल, विषाउ, कुली उतरायण, छोटी बरदायष, बड़ी बरदायष, प्रभु सेवा आदि कई प्रकार के टैक्सों से जनता का षोशण चरम् सीमा पर है। राज्य में जनता पषु से भी पतित जीवन व्यतीत कर रही है श्रीमन्!

देषी राज्य लोक परिशद् के सुमन जी स्थायी समिति में हिमालय प्रान्तीय देषी राज्यों के प्रतिनिधि के रूप में चुने गये। सन् 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन की रूप रेखा की मीटिंग में सुमन जी महात्मा गांधी, नेहरू जी द्वारा बुलाई गई सभा में भाग लेने बम्बई गये थे।सेवा भावना का एक प्रसंग श्री देव सुमन जी द्वारा अपनी पत्नी श्रीमती विनयलक्ष्मी सुमन जी को लिखे गये पत्र से झलकता है।

हमारे जीवन का ध्येय बाह्य सुख नहीं बल्कि सेवा है और वह सेवा कोई सौदा नहीं जिसे मणियोंके मोल खरीदा या बेचा जा सकेय इसलिये हर समय भावना भी सेवामय हो।हम जिस राज्य के रहने वाले हैं जिस जन्मभूमि ने तुम्हें जन्म दिया, तुम जानती हो वहां स्त्री जाति की कैसी स्थिति है विनय! – श्री देव सुमन, जामिया नगर, दिल्ली। दि0 10.12.1942 अब क्या था सुमन जी को राज्य में प्रवेष करने से मना कर दिया गया व उनसे देष द्रोही जैसा व्यवहार किया जाने लगा। टिहरी राजा के गुप्तचर उनके घर (ग्राम-जौल) पर नजर रखने लगे। सुमन जी पर तरह-तरह के ऐक्ट लगाये जाने लगे। एक दिन 30 दिसम्बर, 1943 को श्री देव सुमन जी को टिहरी जेल की 8 न0 कोठरी में डाला गया। उनके षरीर पर सिर से लेकर पैर तक 35 सेर वजन की बेड़ी पहना दी गई, न तो व ठीक से बैठ पाते न सो पाते। षरीर से सारे कपड़े उतार दिये गये। जाड़ों में उनके विस्तर पर पानी डाल दिया जाता, खाने के लिये उन्हें कांच और भूसे की रोटी दी जाती। सश्रम तथा तरह-तरह की कठोर यातनायें उन्हंे दी जाती थी। उन पर राजद्रोह का झूठा मुकदमा चलाकर, 2 वर्श का कठोर कारावास एंव 200 रू0 जुर्माना सुनाया गया। सुमन जी ने जेल से राजा के लिये कई पत्र लिखे परन्तु उत्तर एक का भी नहीं आया। इन्हीं पत्रांे में जनता की भलाई के लिये मांगी गई 20 सूत्रीय मांगो में से निम्न मांगे भी थीं।


  • टिहरी राज्य में उत्तरदायी षासन लागू हो।
  • जनता को पूर्ण नागरिक स्वतन्त्रता दी जाय। उसे प्रेम, सभा, जुलस की पूरी आजादी दी जाय।
  • कर, लगान, मुकदमे, सामाजिक कुरूतियों को मिटाया जाय।
  • रजिस्ट्रेषन आॅफ एषोसियेषन ऐक्ट तुरन्त रद्द कर दिया जाय।
  • जनता को जंगल की सुविधा दी जाय।
  • प्रति 10 मील पर अस्पताल/डिस्पंेसरी खोली जाय।
  • पट्टी पंचायत की जगह ग्राम पंचायत बनाई जाय।
  • सहकारी समितियंा, केन्द्रीय विकास बैंक खोले जाय।
  • हरिजनों को भूमि व षिक्षा दी जाय।
  • स्त्रियों को षिक्षा, मताधिकार (वोट) की अनुमति दी जाय।
  • पूर्ण मद्य निशेध लागू किया जाय।
  • उद्योग-धन्धो का विकास किया जाय।
  • राज दरबार के लोगों की विदेषयात्रा, मनोरंजन पर रोक लगाई जाय।
  • नौकरी राज्य के लोगों को ही दी जाय।
  • पौण टुंटी समाप्त हो।
  • सेना के खर्च को घटाकर जनता पर धन खर्च हो।
  • लोगो की षिकायत महाराजा द्वारा सप्ताह में दो दिन आवष्य सुनी जाय।

मांगे नहीं सुनी गई। श्री देव सुमन जी ने 3 मई, सन् 1944 से टिहरी जेल के अन्दर अनषन प्रारम्भ कर दिया। जेल के कर्मचारियों, जेल दरोगा मोर सिंह द्वारा सुमन जी के अनषन तोड़ने के लिये जबरदस्ती नलियों के द्वारा उनके नाक व मुंह के रास्ते उन्हे दूध पिलाया जाता तथा उन्हें बाध्य किया जाता।
टिहरी जेल के अन्दर सुमन जी पर अत्याचार बढ़ाये गये। सुमन जी को डा0 बेलीराम ने इन्ट्रावाईटिक का इन्जेक्षन दिया, वे पानी-पानी चिल्लाते रहे, परन्तु उन्हें पानी नहीं दिया गया। आखिर 25 जुलाई, सन् 1944 की सांय 3.30 बजे श्री देव सुमन जी को अत्याचारियों द्वारा मृत्यु की गहरी नींद सुला दिया गया और राश्ट्र के महान क्रान्तिकारी, जनता व राश्ट्र की भलाई के लिये 84 दिनों की ऐतिहासिक अनषन के पष्चात् राश्ट्र की बलिबेदी पर चढ़ गये। कहीं पता न चले, नहीं तो बाहर क्रान्ति की आग फैल जायेगी। रात में भिलंगना के गहरे पानी में मोर सिंह दरोगा व उनके सिपाहियों ने सुमन जी की लाष को फेंक दिया। उसके पष्चात् उनकी लाष का कहीं पता भी नहीं चल पाया। भारत जैसे आध्यामिक धर्मपरायण राश्ट्र में उनके अंतिम संस्कारों के लिये उनके परिजनों को मृत षरीर भी नही सौंपा गया, जो अत्याचार की पराकाश्ठा व हिन्दू धर्म की धज्जियां उड़ाता हैं।

श्री देव सुमन जी की पत्नी श्रीमती विनयलक्ष्मी सुमन जी को हरिद्वार में अखबार के माध्यम से यह खबर एक हफ्ते बाद सुनने में आई। टिहरी के बगल में ही सुमन जी की ससुराल पडियारगांव में यह खबर 5 दिनों बाद सुनाई दी तो जनता में तब उबाल आया। जिसका प्रतिफल यह हुआ कि- 15 जनवरी, 1948 (मकर संक्रान्ति) के दिन स्वयं टिहरी नरेष ने अपनी आंखो से देखा कि गुस्साई जनता ने अपने ही राजा को टिहरी भागीरथी पुल से उल्टा खदेड़ दिया व उन्हे टिहरी में प्रवेष नहीं करने दिया गया।